Sunday 21 February 2016

कभी पूछों जिंदगीसे, कैसी हैं तु?

कभी पूछों जिंदगीसे, कैसी हैं तु?
जवाब शायद ही मिले।
वो हसेगी, या रो भी सकती हैं,
ये सोचकर कि चलो किसीने तो उसके हालात पूछें।
कभी पूछों जिंदगीसे, कैसी हैं तु?


कभी लंबी सांसे लो तो उसकी आवाज़ सुनाई देगी।
"मैं ठीक हूँ " ऐसा केहकर झुठी तसल्ली देगी ,
जरा रूक कर, उसकी आँखों में झाँक कर
पूँछ लेना उसको कैसी हैं तु?


मैं तो तेरे साथ ही हूँ, दूर तो तू गया हैं,
न जाने अपना साथ क्यों भूल गया हैं?
मैं तो तब भी थी जब तुने पहली सांस ली थी,
मैं तो अब भी हूँ जब तुझें सांस लेने कि भी फुरसत नहीं।


मैं तो तेरी सहेली हूँ, ना कि कोई पहेली हूँ,
आज अचानक क्या बात हो गयी,
क्या दिल ने तुझे मेरी याद दिलायी?
तु क्या मुझे पूछेगा, मैं ही तुझे पूँछती हूँ, कैसा हैं तु?


तब क्या जवाब दोगे उसे?
कैसे कहोगे कि उससे दूर रहकर हालात ठीक नहीं हैं,
वो तो सही रास्ते और गति से चल रही हैं
तुमही ख़रगोश बने उसे हराने चले हो।


तुम्हारा मौन ही उसे जवाब देगा
समझ जायेगी वो अनकही बात को
राह चले फिसलता बच्चा अपनी माँ का हाथ जैसे थामे
वैसे ही उसका हाथ पकड़कर तुम चलना आगे।


इस बात को अच्छी तरह समझ लेना तुम की
जीना वो दौड़ हैं जो जिंदगी के साथ दौड़नी हैं
दोनों को साथ चलकर ही मंजिल हासिल करनी हैं
जिंदगी से बातें करो उसका हाथ थामकर,
फिर किसी मोड़ पे जब पूछोगे कैसी हैं तु
तो देगी जवाब हँसकर।             
   

No comments:

Post a Comment