Wednesday, 21 September 2016

क्यों बैठा हैं तु निराश?


जमीं पर चलती एक नन्ही चींटी
जरासा रुक कर मुझको बोली
यूँ गुमसुम शांत शांत
क्यों बैठा हैं तु निराश?

चल उठ कुछ काम कर
ऐसे ना समय बरबाद कर
खुद को ना बना जिंदा लाश
क्यों बैठा हैं तु निराश?

देख वह चिड़ीया कैसे मेहनत कर
सुखे पत्ते और घास को चुभकर
घोसला बनाये कितना ख़ास
क्यों बैठा हैं तु निराश?

नदिया का पानी बहना रुकता नहीं
गर्मी, बारिश और ठंड का मौसम चुकता नहीं
छोड़ दे बीते हुए कल को लेके एक लंबी सांस
क्यों बैठा हैं तु निराश?

मैं तो रुक नहीं सकती एक भी पल
मेहनत करु तो देख सकु मैं कल
तु तो इंसान हैं ला सकता हैं किसी जीवन में प्रकाश
क्यों बैठा हैं तु निराश?

थक जाएं तो तु कर थोड़ासा आराम
लेक़िन तु रुक मत जब तक ना होवे ज़िंदगी की शाम
जीवन व्यर्थ ना कर ऐसे बैठे हुए उदास
क्यों बैठा हैं तु निराश?

मैं भी इंसान का जनम ले चुकी हूँ
मोक्ष कि राह पे चल चुकी हूँ
बहुत कुछ करना रह गया जो था दिल के पास
क्यों बैठा हैं तु निराश?